Saturday, December 21, 2013

कालनिर्णय (Kaalnirnay)

kaalnirnay, kalnirnay
Add caption
ज्योतिष में किसी भी घटना का कालनिर्णय मुख्यीत: दशा और गोचर के आधार पर किया जाता है। दशा और गोचर में सामान्यटत: दशा को ज्यादा महत्व दिया जाता है। वैसे तो दशाएं भी कई होती हैं परन्तु हम सबसे प्रचलित विंशोत्तैरी दशा की चर्चा करेंगे और जानेंगे कि विंशोत्तरी दशा का प्रयोग घटना के काल निर्णय में कैसे किया जाए।विंशोत्तकरी दशा नक्षत्र पर आधारित है। जन्म के समय चन्द्रंमा जिस नक्षत्र में होता है, उसी नक्षत्र के स्वामी से दशा प्रारम्भर होती है। दशाक्रम सदैव इस प्रकार रहता है -सूर्य, चन्द्रा, मंगल, राहु, गुरु, शनि, बुध, केतु, शुक्र।

जैसा कि विदित है कि दशा क्रम ग्रहों के सामान्य क्रम से अलग है और नक्षत्रो पर आधारित है, अत: इसे याद कर लेना चाहिए। माना कि जन्म के समय चन्द्र् शतभिषा नक्षत्र में था। पिछली बार हमने जाना था कि शतभिषा नक्षत्र का स्वा‍मी राहु है अत: दशाक्रम राहु से प्रारम्भ होकर इस प्रकार होगा -राहु, गुरु, शनि, बुध, केतु, शुक्र, सूर्य, चन्द्रप, मंगलकुल दशा अवधि १२० वर्ष की होती है। हर ग्रह की उपरोक्तु दशा को महादशा भी कहते हैं और ग्रह की महादशा में फिर से नव ग्रह की अन्त र्दशा होती हैं। इसी प्रकार हर अन्तहर्दशा में फिर से नव ग्रह की प्रत्य न्त र्दशा होती हैं और प्रत्यसन्तपर्दशा के अन्द्र सूक्ष्मन दशाएं होती हैं।जिस प्रकार ग्रहों का दशा क्रम निश्चित है उसी प्रकार हर ग्रह की दशा की अवधि भी निश्चित है जो कि इस प्रकार है

ग्रह दशा की अवधि (वर्षों में)

सूर्य    ६
चन्द्र    १०
मंगल    ७
राहु    १८
गुरु    १६
शनि    १९
बुध    १७
केतु    ७
शुक्र    २०
कुल    १२०

0 comments:

Post a Comment