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Tuesday, December 24, 2013

यदा यदा ही धर्मस्य ग्लानिर्भवति


आज जानिए "श्री मद्-भगवत गीता" के बारे में-

किसको किसने सुनाई?
उ.- श्रीकृष्ण ने अर्जुन को सुनाई।

कब सुनाई?
उ.- आज से लगभग 7 हज़ार साल पहले सुनाई।

भगवान ने किस दिन गीता सुनाई?
उ.- रविवार के दिन।

कोनसी तिथि को?
उ.- एकादशी

कहा सुनाई?
उ.- कुरुक्षेत्र की रणभूमि में।

कितनी देर में सुनाई?
उ.- लगभग 45 मिनट में

क्यू सुनाई?
उ.- कर्त्तव्य से भटके हुए अर्जुन को कर्त्तव्य सिखाने के लिए और आने वाली पीढियों को धर्म-ज्ञान सिखाने के लिए।

कितने अध्याय है?
उ.- कुल 18 अध्याय

कितने श्लोक है?
उ.- 700 श्लोक

गीता में क्या-क्या बताया गया है?
उ.- ज्ञान-भक्ति-कर्म योग मार्गो की विस्तृत व्याख्या की गयी है, इन मार्गो पर चलने से व्यक्ति निश्चित ही परमपद का अधिकारी बन जाता है।

गीता को अर्जुन के अलावा
और किन किन लोगो ने सुना?
उ.- धृतराष्ट्र एवं संजय ने

अर्जुन से पहले गीता का पावन ज्ञान किन्हें मिला था?
उ.- भगवान सूर्यदेव को

गीता की गिनती किन धर्म-ग्रंथो में आती है?
उ.- उपनिषदों में

गीता किस महाग्रंथ का भाग है....?
उ.- गीता महाभारत के एक अध्याय शांति-पर्व का एक हिस्सा है।

गीता का दूसरा नाम क्या है?
उ.- गीतोपनिषद

गीता का सार क्या है?
उ.- प्रभु श्रीकृष्ण की शरण लेना

गीता में किसने कितने श्लोक कहे है?
उ.- श्रीकृष्ण ने- 574
अर्जुन ने- 85
धृतराष्ट्र ने- 1
संजय ने- 40.

अपनी युवा-पीढ़ी को गीता जी के बारे में जानकारी पहुचाने हेतु इसे ज्यादा से ज्यादा शेअर करे। धन्यवाद

Sunday, December 22, 2013

विभीषणकृत हनुमत्स्तोत्र

hanuman strotra
नमो हनुमते तुभ्यं नमो मारुतसूनवे 
नमः श्रीराम भक्ताय शयामास्याय च ते नमः !! 
नमो वानर वीराय सुग्रीवसख्यकारिणे 
लङ्काविदाहनार्थाय हेलासागरतारिणे !!
सीताशोक विनाशाय राममुद्राधराय च 
रावणान्त कुलचछेदकारिणे ते नमो नमः !!
मेघनादमखध्वंसकारिणे ते नमो नमः 
अशोकवनविध्वंस कारिणे भयहारिणे !!
वायुपुत्राय वीराय आकाशोदरगामिने
वनपालशिरश् छेद लङ्काप्रसादभजिने !!
ज्वलत्कनकवर्णाय दीर्घलाङ्गूलधारिणे 
सौमित्रिजयदात्रे च रामदूताय ते नमः !!
अक्षस्य वधकर्त्रे च ब्रह्म पाश निवारिणे 
लक्ष्मणाङग्महाशक्ति घात क्षतविनाशिने !!
रक्षोघ्नाय रिपुघ्नाय भूतघ्नाय च ते नमः 
ऋक्षवानरवीरौघप्राणदाय नमो नमः !!
परसैन्यबलघ्नाय शस्त्रास्त्रघ्नाय ते नमः 
विषघ्नाय द्विषघ्नाय ज्वरघ्नाय च ते नमः !!
महाभयरिपुघ्नाय भक्तत्राणैककारिणे
परप्रेरितमन्त्रणाम् यन्त्रणाम् स्तम्भकारिणे !!
पयःपाषाणतरणकारणाय नमो नमः 
बालार्कमण्डलग्रासकारिणे भवतारिणे !!
नखायुधाय भीमाय दन्तायुधधराय च 
रिपुमायाविनाशाय रामाज्ञालोकरक्षिणे !!
प्रतिग्राम स्तिथतायाथ रक्षोभूतवधार्थीने
करालशैलशस्त्राय दुर्मशस्त्राय ते नमः !!
बालैकब्रह्मचर्याय रुद्रमूर्ति धराय च 
विहंगमाय सर्वाय वज्रदेहाय ते नमः !!
कौपीनवासये तुभ्यं रामभक्तिरताय च 
दक्षिणाशभास्कराय शतचन्द्रोदयात्मने !! 
कृत्याक्षतव्यधाघ्नाय सर्वकळेशहराय च 
स्वाभ्याज्ञापार्थसंग्राम संख्ये संजयधारिणे !! 
भक्तान्तदिव्यवादेषु संग्रामे जयदायिने 
किलकिलाबुबुकोच्चारघोर शब्दकराय च !!
सर्पागि्नव्याधिसंस्तम्भकारिणे वनचारिणे
सदा वनफलाहार संतृप्ताय विशेषतः !!
महार्णव शिलाबद्धसेतुबन्धाय ते नमः 
वादे विवादे संग्रामे भये घोरे महावने !!
सिंहव्याघ्रादिचौरेभ्यः स्तोत्र पाठाद भयं न हि
दिव्ये भूतभये व्याघौ विषे स्थावरजङ्गमे !!
राजशस्त्रभये चोग्रे तथा ग्रहभयेषु च 
जले सर्पे महावृष्टौ दुर्भिक्षे प्राणसम्प्लवे !!
पठेत् स्तोत्रं प्रमुच्येत भयेभ्यः सर्वतो नरः 
तस्य क्वापि भयं नास्ति हनुमत्स्तवपाठतः !!
सर्वदा वै त्रिकालं च पठनीयमिदं स्तवं
सर्वान् कामानवाप्नोति नात्र कार्या विचारणा !!
विभीषण कृतं स्तोत्रं ताक्ष्येर्ण समुदीरितम्
ये पठिष्यन्ति भक्तया वै सिद्धयस्तत्करे सि्थताः !!

Saturday, December 21, 2013

कुंडली में १२ भाव होते है प्रत्येक भाव का अपना फल है

• १-आपके जीवन में कौन कौन सी परेशानियां हैं, और कब आएगी…? , शरीर क्यों और कब साथ नहीं देता इसका पता होना चाहिए।…? इन्शान के अन्दर सभी गुण होते हुए भी वो आखिर लाचार क्यों रहता है ….?

• २- धन – सम्पति सम्बंधित जानकारी …? . धन का संग्रह ना होना ,

• ३- आपकी कुण्डली में कहीं दोष तो नहीं जो आपके भाई बहन के साथ सम्बन्ध खराब कर दे और साझेदारी या व्यापर करने में आप को आपर में कलह करना पड़े.,…?

• ४- मकान , वाहन, जमीन-जायदाद लेने के बाद या अचानक काम में नुक्सान या लेने के बाद भी सुख- सुविधावो में कमी या आपके घर में क्लेश क्यों रहता है ?

• ५. किस विषय को चुने जो आप को नई उचाई पर ले जायेगा…? साथ ही संतान के बारे में जाने की हमारे बच्चे दुख का कारण तो नही बन रहें हैं और आगे साथ देगे भी या नहीं …..?

• ६- आपके जीवन में कौन सा बुरा वक्त कब और कैसे आएगा , कहीं आपके मित्र ही शत्रु न बन जाये , या आप का अपना ही शारीर आप का साथ न छोड़ दे .. दुर्घटना या बिमारी कैसे आ सकती है, कहीं ऐसा तो नहीं कि जिसके लिए आपने अपना पूरा जीवन अच्छा करें वही आपको धोखा दें .?,

• ७- आपकी कुण्डली में शादी के बाद जीवन साथी का सुख है या नहीं और होगा भी तो कब होगी , प्रेम विवाह करने के बाद भी तलाक की मुशीबत न आये …?

• ८- विदेश यात्रा … कुंडली में जन्म स्थान से दूर जाने को ही विदेशा यात्रा कहते है ,,,,? अकस्मात दुर्घटना कही आप की जीवन में तो नहीं होगी….?

• ९- आप का भाग्य आप का साथ देगा या नहीं , कही आप अपना कीमती समय बस यूँ ही मौज मस्ती में गुजार रहे है, आपको बहुत ज्यादा सफलता क्यों नही मिलती या कब मिलेगी ?….? 

• १०- व्यापर करे तो कौन सा करें , पिता से कितना सहयोग मिलेगा , पैत्रिक सम्पति मिलेगी या नहीं ,..

• ११- जीवन में लाभ होगा या नहीं और होगा भी तो कब होगा और कैसे या हमारे बड़े भाई – बहन या सगे सम्बन्धी साथ देगे या नहीं , ..?

• १२ भाव हमें हानी के बारे में बताता है जैसे किस कार्य को करे जिससे हमें हानी न हो या कही आपका बिज़नस पार्टनर ही आप को नुकसान न पहुंचा दे , या जिसे आप अपना समझते है वो सिर्फ आप की दौलत से प्यार करते है …..

• जिस भाव में जो ग्रह अशुभ फल प्रदान करे उसका हमें उपाय करना चाहिए ,

नक्षत्रों के स्वामी (nakshatr or un ke swami)....

अब हम आप को नक्षत्रों के बारे में बताते है कुल 27 नक्षत्र होते हैं ओर उनके स्वामी भी अलग अलग होते है 

Nakshtra, Nakshtra swami
Nakshatra Chart
१- अश्विनी (केतु)

२- भरणी ( शुक्र )

३- कृत्तिका (सूर्य )

४-रोहिणी ( चंद्र )

५- मृगशिरा (मंगल )

६- आर्द्रा ( राहु )

७ - पुनर्वसु (गुरु )

८- पुष्य ( शनि )

९ - आश्लेषा ( बुध )

१० - मघा ( केतु )

११- पूर्वाफाल्गुनी ( शुक्र )

१२ -उत्तराफाल्गुनी (सूर्य )

१३ - हस्त ( चंद्र )

१४- चित्रा (मंगल )

१५- स्वाती ( राहु )

१६ - विशाखा ( गुरु )

१७ - अनुराधा ( शनि )

१८- ज्येष्ठा ( बुध )

१९- मूल ( केतु )

२०- पूर्वाषाढा (शुक्र )

२१- उत्तराषाढा (सूर्य )

२२- श्रवण ( चंद्र )

२३- धनिष्ठा (मंगल )

२४ - शतभिषा ( राहु )

२५- पूर्वाभाद्रपद (गुरु )

२६- उत्तराभाद्रपद (शनि )

२७- रेवती (बुध ) .

कालनिर्णय (Kaalnirnay)

kaalnirnay, kalnirnay
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ज्योतिष में किसी भी घटना का कालनिर्णय मुख्यीत: दशा और गोचर के आधार पर किया जाता है। दशा और गोचर में सामान्यटत: दशा को ज्यादा महत्व दिया जाता है। वैसे तो दशाएं भी कई होती हैं परन्तु हम सबसे प्रचलित विंशोत्तैरी दशा की चर्चा करेंगे और जानेंगे कि विंशोत्तरी दशा का प्रयोग घटना के काल निर्णय में कैसे किया जाए।विंशोत्तकरी दशा नक्षत्र पर आधारित है। जन्म के समय चन्द्रंमा जिस नक्षत्र में होता है, उसी नक्षत्र के स्वामी से दशा प्रारम्भर होती है। दशाक्रम सदैव इस प्रकार रहता है -सूर्य, चन्द्रा, मंगल, राहु, गुरु, शनि, बुध, केतु, शुक्र।

जैसा कि विदित है कि दशा क्रम ग्रहों के सामान्य क्रम से अलग है और नक्षत्रो पर आधारित है, अत: इसे याद कर लेना चाहिए। माना कि जन्म के समय चन्द्र् शतभिषा नक्षत्र में था। पिछली बार हमने जाना था कि शतभिषा नक्षत्र का स्वा‍मी राहु है अत: दशाक्रम राहु से प्रारम्भ होकर इस प्रकार होगा -राहु, गुरु, शनि, बुध, केतु, शुक्र, सूर्य, चन्द्रप, मंगलकुल दशा अवधि १२० वर्ष की होती है। हर ग्रह की उपरोक्तु दशा को महादशा भी कहते हैं और ग्रह की महादशा में फिर से नव ग्रह की अन्त र्दशा होती हैं। इसी प्रकार हर अन्तहर्दशा में फिर से नव ग्रह की प्रत्य न्त र्दशा होती हैं और प्रत्यसन्तपर्दशा के अन्द्र सूक्ष्मन दशाएं होती हैं।जिस प्रकार ग्रहों का दशा क्रम निश्चित है उसी प्रकार हर ग्रह की दशा की अवधि भी निश्चित है जो कि इस प्रकार है

ग्रह दशा की अवधि (वर्षों में)

सूर्य    ६
चन्द्र    १०
मंगल    ७
राहु    १८
गुरु    १६
शनि    १९
बुध    १७
केतु    ७
शुक्र    २०
कुल    १२०