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Sunday, January 5, 2014

गजेन्द्र मोक्ष - Gajendra Moksh Path to heel all problems


श्रीमद्भागवतान्तर्गत गजेन्द्र कृत भगवान का स्तवन

श्री शुक उवाच – एवं व्यवसितो बुद्ध्या समाधाय मनो हृदि ।

जजाप परमं जाप्यं प्राग्जन्मन्यनुशिक्षितम ॥१॥
गजेन्द्र उवाच गजराज ने (मन ही मन) कहा -
ऊं नमो भगवते तस्मै यत एतच्चिदात्मकम ।
पुरुषायादिबीजाय परेशायाभिधीमहि ॥१॥
यस्मिन्निदं यतश्चेदं येनेदं य इदं स्वयं ।
योस्मात्परस्माच्च परस्तं प्रपद्ये स्वयम्भुवम ॥३॥
यः स्वात्मनीदं निजमाययार्पितं
क्कचिद्विभातं क्क च तत्तिरोहितम ।
अविद्धदृक साक्ष्युभयं तदीक्षते
स आत्ममूलोवतु मां परात्परः ॥४॥
कालेन पंचत्वमितेषु कृत्स्नशो
लोकेषु पालेषु च सर्व हेतुषु ।
तमस्तदाsसीद गहनं गभीरं
यस्तस्य पारेsभिविराजते विभुः ॥५॥
न यस्य देवा ऋषयः पदं विदु-
र्जन्तुः पुनः कोsर्हति गन्तुमीरितुम ।
यथा नटस्याकृतिभिर्विचेष्टतो
दुरत्ययानुक्रमणः स मावतु ॥६॥
दिदृक्षवो यस्य पदं सुमंगलम
विमुक्त संगा मुनयः सुसाधवः ।
चरन्त्यलोकव्रतमव्रणं वने
भूतत्मभूता सुहृदः स मे गतिः ॥७॥
न विद्यते यस्य न जन्म कर्म वा
न नाम रूपे गुणदोष एव वा ।
तथापि लोकाप्ययाम्भवाय यः
स्वमायया तान्युलाकमृच्छति ॥८॥
तस्मै नमः परेशाय ब्राह्मणेsनन्तशक्तये ।
अरूपायोरुरूपाय नम आश्चर्य कर्मणे ॥९॥
नम आत्म प्रदीपाय साक्षिणे परमात्मने ।
नमो गिरां विदूराय मनसश्चेतसामपि ॥१०॥
सत्त्वेन प्रतिलभ्याय नैष्कर्म्येण विपश्चिता ।
नमः केवल्यनाथाय निर्वाणसुखसंविदे ॥११॥
नमः शान्ताय घोराय मूढाय गुण धर्मिणे ।
निर्विशेषाय साम्याय नमो ज्ञानघनाय च ॥१२॥
क्षेत्रज्ञाय नमस्तुभ्यं सर्वाध्यक्षाय साक्षिणे ।
पुरुषायात्ममूलय मूलप्रकृतये नमः ॥१३॥
सर्वेन्द्रियगुणद्रष्ट्रे सर्वप्रत्ययहेतवे ।
असताच्छाययोक्ताय सदाभासय ते नमः ॥१४॥
नमो नमस्ते खिल कारणाय
निष्कारणायद्भुत कारणाय ।
सर्वागमान्मायमहार्णवाय
नमोपवर्गाय परायणाय ॥१५॥
गुणारणिच्छन्न चिदूष्मपाय
तत्क्षोभविस्फूर्जित मान्साय ।
नैष्कर्म्यभावेन विवर्जितागम-
स्वयंप्रकाशाय नमस्करोमि ॥१६॥
मादृक्प्रपन्नपशुपाशविमोक्षणाय
मुक्ताय भूरिकरुणाय नमोsलयाय ।
स्वांशेन सर्वतनुभृन्मनसि प्रतीत-
प्रत्यग्दृशे भगवते बृहते नमस्ते ॥१७॥
आत्मात्मजाप्तगृहवित्तजनेषु सक्तै-
र्दुष्प्रापणाय गुणसंगविवर्जिताय ।
मुक्तात्मभिः स्वहृदये परिभाविताय
ज्ञानात्मने भगवते नम ईश्वराय ॥१८॥
यं धर्मकामार्थविमुक्तिकामा
भजन्त इष्टां गतिमाप्नुवन्ति ।
किं त्वाशिषो रात्यपि देहमव्ययं
करोतु मेदभ्रदयो विमोक्षणम ॥१९॥
एकान्तिनो यस्य न कंचनार्थ
वांछन्ति ये वै भगवत्प्रपन्नाः ।
अत्यद्भुतं तच्चरितं सुमंगलं
गायन्त आनन्न्द समुद्रमग्नाः ॥२०॥
तमक्षरं ब्रह्म परं परेश-
मव्यक्तमाध्यात्मिकयोगगम्यम ।
अतीन्द्रियं सूक्षममिवातिदूर-
मनन्तमाद्यं परिपूर्णमीडे ॥२१॥
यस्य ब्रह्मादयो देवा वेदा लोकाश्चराचराः ।
नामरूपविभेदेन फल्ग्व्या च कलया कृताः ॥२२॥
यथार्चिषोग्नेः सवितुर्गभस्तयो
निर्यान्ति संयान्त्यसकृत स्वरोचिषः ।
तथा यतोयं गुणसंप्रवाहो
बुद्धिर्मनः खानि शरीरसर्गाः ॥२३॥
स वै न देवासुरमर्त्यतिर्यंग
न स्त्री न षण्डो न पुमान न जन्तुः ।
नायं गुणः कर्म न सन्न चासन
निषेधशेषो जयतादशेषः ॥२४॥
जिजीविषे नाहमिहामुया कि-
मन्तर्बहिश्चावृतयेभयोन्या ।
इच्छामि कालेन न यस्य विप्लव-
स्तस्यात्मलोकावरणस्य मोक्षम ॥२५॥
सोsहं विश्वसृजं विश्वमविश्वं विश्ववेदसम ।
विश्वात्मानमजं ब्रह्म प्रणतोस्मि परं पदम ॥२६॥
योगरन्धित कर्माणो हृदि योगविभाविते ।
योगिनो यं प्रपश्यन्ति योगेशं तं नतोsस्म्यहम ॥२७॥
नमो नमस्तुभ्यमसह्यवेग-
शक्तित्रयायाखिलधीगुणाय ।
प्रपन्नपालाय दुरन्तशक्तये
कदिन्द्रियाणामनवाप्यवर्त्मने ॥२८॥
नायं वेद स्वमात्मानं यच्छ्क्त्याहंधिया हतम ।
तं दुरत्ययमाहात्म्यं भगवन्तमितोsस्म्यहम ॥२९॥

श्री शुकदेव उवाच –
एवं गजेन्द्रमुपवर्णितनिर्विशेषं
ब्रह्मादयो विविधलिंगभिदाभिमानाः ।
नैते यदोपससृपुर्निखिलात्मकत्वात
तत्राखिलामर्मयो हरिराविरासीत ॥३०॥
तं तद्वदार्त्तमुपलभ्य जगन्निवासः
स्तोत्रं निशम्य दिविजैः सह संस्तुवद्भि : ।
छन्दोमयेन गरुडेन समुह्यमान -
श्चक्रायुधोsभ्यगमदाशु यतो गजेन्द्रः ॥३१॥
सोsन्तस्सरस्युरुबलेन गृहीत आर्त्तो
दृष्ट्वा गरुत्मति हरि ख उपात्तचक्रम ।
उत्क्षिप्य साम्बुजकरं गिरमाह कृच्छा -
न्नारायण्खिलगुरो भगवान नम्स्ते ॥३२॥
तं वीक्ष्य पीडितमजः सहसावतीर्य
सग्राहमाशु सरसः कृपयोज्जहार ।
ग्राहाद विपाटितमुखादरिणा गजेन्द्रं
सम्पश्यतां हरिरमूमुचदुस्त्रियाणाम ॥३३॥

Tuesday, December 24, 2013

यदा यदा ही धर्मस्य ग्लानिर्भवति


आज जानिए "श्री मद्-भगवत गीता" के बारे में-

किसको किसने सुनाई?
उ.- श्रीकृष्ण ने अर्जुन को सुनाई।

कब सुनाई?
उ.- आज से लगभग 7 हज़ार साल पहले सुनाई।

भगवान ने किस दिन गीता सुनाई?
उ.- रविवार के दिन।

कोनसी तिथि को?
उ.- एकादशी

कहा सुनाई?
उ.- कुरुक्षेत्र की रणभूमि में।

कितनी देर में सुनाई?
उ.- लगभग 45 मिनट में

क्यू सुनाई?
उ.- कर्त्तव्य से भटके हुए अर्जुन को कर्त्तव्य सिखाने के लिए और आने वाली पीढियों को धर्म-ज्ञान सिखाने के लिए।

कितने अध्याय है?
उ.- कुल 18 अध्याय

कितने श्लोक है?
उ.- 700 श्लोक

गीता में क्या-क्या बताया गया है?
उ.- ज्ञान-भक्ति-कर्म योग मार्गो की विस्तृत व्याख्या की गयी है, इन मार्गो पर चलने से व्यक्ति निश्चित ही परमपद का अधिकारी बन जाता है।

गीता को अर्जुन के अलावा
और किन किन लोगो ने सुना?
उ.- धृतराष्ट्र एवं संजय ने

अर्जुन से पहले गीता का पावन ज्ञान किन्हें मिला था?
उ.- भगवान सूर्यदेव को

गीता की गिनती किन धर्म-ग्रंथो में आती है?
उ.- उपनिषदों में

गीता किस महाग्रंथ का भाग है....?
उ.- गीता महाभारत के एक अध्याय शांति-पर्व का एक हिस्सा है।

गीता का दूसरा नाम क्या है?
उ.- गीतोपनिषद

गीता का सार क्या है?
उ.- प्रभु श्रीकृष्ण की शरण लेना

गीता में किसने कितने श्लोक कहे है?
उ.- श्रीकृष्ण ने- 574
अर्जुन ने- 85
धृतराष्ट्र ने- 1
संजय ने- 40.

अपनी युवा-पीढ़ी को गीता जी के बारे में जानकारी पहुचाने हेतु इसे ज्यादा से ज्यादा शेअर करे। धन्यवाद

Sunday, December 22, 2013

विभीषणकृत हनुमत्स्तोत्र

hanuman strotra
नमो हनुमते तुभ्यं नमो मारुतसूनवे 
नमः श्रीराम भक्ताय शयामास्याय च ते नमः !! 
नमो वानर वीराय सुग्रीवसख्यकारिणे 
लङ्काविदाहनार्थाय हेलासागरतारिणे !!
सीताशोक विनाशाय राममुद्राधराय च 
रावणान्त कुलचछेदकारिणे ते नमो नमः !!
मेघनादमखध्वंसकारिणे ते नमो नमः 
अशोकवनविध्वंस कारिणे भयहारिणे !!
वायुपुत्राय वीराय आकाशोदरगामिने
वनपालशिरश् छेद लङ्काप्रसादभजिने !!
ज्वलत्कनकवर्णाय दीर्घलाङ्गूलधारिणे 
सौमित्रिजयदात्रे च रामदूताय ते नमः !!
अक्षस्य वधकर्त्रे च ब्रह्म पाश निवारिणे 
लक्ष्मणाङग्महाशक्ति घात क्षतविनाशिने !!
रक्षोघ्नाय रिपुघ्नाय भूतघ्नाय च ते नमः 
ऋक्षवानरवीरौघप्राणदाय नमो नमः !!
परसैन्यबलघ्नाय शस्त्रास्त्रघ्नाय ते नमः 
विषघ्नाय द्विषघ्नाय ज्वरघ्नाय च ते नमः !!
महाभयरिपुघ्नाय भक्तत्राणैककारिणे
परप्रेरितमन्त्रणाम् यन्त्रणाम् स्तम्भकारिणे !!
पयःपाषाणतरणकारणाय नमो नमः 
बालार्कमण्डलग्रासकारिणे भवतारिणे !!
नखायुधाय भीमाय दन्तायुधधराय च 
रिपुमायाविनाशाय रामाज्ञालोकरक्षिणे !!
प्रतिग्राम स्तिथतायाथ रक्षोभूतवधार्थीने
करालशैलशस्त्राय दुर्मशस्त्राय ते नमः !!
बालैकब्रह्मचर्याय रुद्रमूर्ति धराय च 
विहंगमाय सर्वाय वज्रदेहाय ते नमः !!
कौपीनवासये तुभ्यं रामभक्तिरताय च 
दक्षिणाशभास्कराय शतचन्द्रोदयात्मने !! 
कृत्याक्षतव्यधाघ्नाय सर्वकळेशहराय च 
स्वाभ्याज्ञापार्थसंग्राम संख्ये संजयधारिणे !! 
भक्तान्तदिव्यवादेषु संग्रामे जयदायिने 
किलकिलाबुबुकोच्चारघोर शब्दकराय च !!
सर्पागि्नव्याधिसंस्तम्भकारिणे वनचारिणे
सदा वनफलाहार संतृप्ताय विशेषतः !!
महार्णव शिलाबद्धसेतुबन्धाय ते नमः 
वादे विवादे संग्रामे भये घोरे महावने !!
सिंहव्याघ्रादिचौरेभ्यः स्तोत्र पाठाद भयं न हि
दिव्ये भूतभये व्याघौ विषे स्थावरजङ्गमे !!
राजशस्त्रभये चोग्रे तथा ग्रहभयेषु च 
जले सर्पे महावृष्टौ दुर्भिक्षे प्राणसम्प्लवे !!
पठेत् स्तोत्रं प्रमुच्येत भयेभ्यः सर्वतो नरः 
तस्य क्वापि भयं नास्ति हनुमत्स्तवपाठतः !!
सर्वदा वै त्रिकालं च पठनीयमिदं स्तवं
सर्वान् कामानवाप्नोति नात्र कार्या विचारणा !!
विभीषण कृतं स्तोत्रं ताक्ष्येर्ण समुदीरितम्
ये पठिष्यन्ति भक्तया वै सिद्धयस्तत्करे सि्थताः !!

Saturday, December 21, 2013

कुंडली में १२ भाव होते है प्रत्येक भाव का अपना फल है

• १-आपके जीवन में कौन कौन सी परेशानियां हैं, और कब आएगी…? , शरीर क्यों और कब साथ नहीं देता इसका पता होना चाहिए।…? इन्शान के अन्दर सभी गुण होते हुए भी वो आखिर लाचार क्यों रहता है ….?

• २- धन – सम्पति सम्बंधित जानकारी …? . धन का संग्रह ना होना ,

• ३- आपकी कुण्डली में कहीं दोष तो नहीं जो आपके भाई बहन के साथ सम्बन्ध खराब कर दे और साझेदारी या व्यापर करने में आप को आपर में कलह करना पड़े.,…?

• ४- मकान , वाहन, जमीन-जायदाद लेने के बाद या अचानक काम में नुक्सान या लेने के बाद भी सुख- सुविधावो में कमी या आपके घर में क्लेश क्यों रहता है ?

• ५. किस विषय को चुने जो आप को नई उचाई पर ले जायेगा…? साथ ही संतान के बारे में जाने की हमारे बच्चे दुख का कारण तो नही बन रहें हैं और आगे साथ देगे भी या नहीं …..?

• ६- आपके जीवन में कौन सा बुरा वक्त कब और कैसे आएगा , कहीं आपके मित्र ही शत्रु न बन जाये , या आप का अपना ही शारीर आप का साथ न छोड़ दे .. दुर्घटना या बिमारी कैसे आ सकती है, कहीं ऐसा तो नहीं कि जिसके लिए आपने अपना पूरा जीवन अच्छा करें वही आपको धोखा दें .?,

• ७- आपकी कुण्डली में शादी के बाद जीवन साथी का सुख है या नहीं और होगा भी तो कब होगी , प्रेम विवाह करने के बाद भी तलाक की मुशीबत न आये …?

• ८- विदेश यात्रा … कुंडली में जन्म स्थान से दूर जाने को ही विदेशा यात्रा कहते है ,,,,? अकस्मात दुर्घटना कही आप की जीवन में तो नहीं होगी….?

• ९- आप का भाग्य आप का साथ देगा या नहीं , कही आप अपना कीमती समय बस यूँ ही मौज मस्ती में गुजार रहे है, आपको बहुत ज्यादा सफलता क्यों नही मिलती या कब मिलेगी ?….? 

• १०- व्यापर करे तो कौन सा करें , पिता से कितना सहयोग मिलेगा , पैत्रिक सम्पति मिलेगी या नहीं ,..

• ११- जीवन में लाभ होगा या नहीं और होगा भी तो कब होगा और कैसे या हमारे बड़े भाई – बहन या सगे सम्बन्धी साथ देगे या नहीं , ..?

• १२ भाव हमें हानी के बारे में बताता है जैसे किस कार्य को करे जिससे हमें हानी न हो या कही आपका बिज़नस पार्टनर ही आप को नुकसान न पहुंचा दे , या जिसे आप अपना समझते है वो सिर्फ आप की दौलत से प्यार करते है …..

• जिस भाव में जो ग्रह अशुभ फल प्रदान करे उसका हमें उपाय करना चाहिए ,

नक्षत्रों के स्वामी (nakshatr or un ke swami)....

अब हम आप को नक्षत्रों के बारे में बताते है कुल 27 नक्षत्र होते हैं ओर उनके स्वामी भी अलग अलग होते है 

Nakshtra, Nakshtra swami
Nakshatra Chart
१- अश्विनी (केतु)

२- भरणी ( शुक्र )

३- कृत्तिका (सूर्य )

४-रोहिणी ( चंद्र )

५- मृगशिरा (मंगल )

६- आर्द्रा ( राहु )

७ - पुनर्वसु (गुरु )

८- पुष्य ( शनि )

९ - आश्लेषा ( बुध )

१० - मघा ( केतु )

११- पूर्वाफाल्गुनी ( शुक्र )

१२ -उत्तराफाल्गुनी (सूर्य )

१३ - हस्त ( चंद्र )

१४- चित्रा (मंगल )

१५- स्वाती ( राहु )

१६ - विशाखा ( गुरु )

१७ - अनुराधा ( शनि )

१८- ज्येष्ठा ( बुध )

१९- मूल ( केतु )

२०- पूर्वाषाढा (शुक्र )

२१- उत्तराषाढा (सूर्य )

२२- श्रवण ( चंद्र )

२३- धनिष्ठा (मंगल )

२४ - शतभिषा ( राहु )

२५- पूर्वाभाद्रपद (गुरु )

२६- उत्तराभाद्रपद (शनि )

२७- रेवती (बुध ) .

कालनिर्णय (Kaalnirnay)

kaalnirnay, kalnirnay
Add caption
ज्योतिष में किसी भी घटना का कालनिर्णय मुख्यीत: दशा और गोचर के आधार पर किया जाता है। दशा और गोचर में सामान्यटत: दशा को ज्यादा महत्व दिया जाता है। वैसे तो दशाएं भी कई होती हैं परन्तु हम सबसे प्रचलित विंशोत्तैरी दशा की चर्चा करेंगे और जानेंगे कि विंशोत्तरी दशा का प्रयोग घटना के काल निर्णय में कैसे किया जाए।विंशोत्तकरी दशा नक्षत्र पर आधारित है। जन्म के समय चन्द्रंमा जिस नक्षत्र में होता है, उसी नक्षत्र के स्वामी से दशा प्रारम्भर होती है। दशाक्रम सदैव इस प्रकार रहता है -सूर्य, चन्द्रा, मंगल, राहु, गुरु, शनि, बुध, केतु, शुक्र।

जैसा कि विदित है कि दशा क्रम ग्रहों के सामान्य क्रम से अलग है और नक्षत्रो पर आधारित है, अत: इसे याद कर लेना चाहिए। माना कि जन्म के समय चन्द्र् शतभिषा नक्षत्र में था। पिछली बार हमने जाना था कि शतभिषा नक्षत्र का स्वा‍मी राहु है अत: दशाक्रम राहु से प्रारम्भ होकर इस प्रकार होगा -राहु, गुरु, शनि, बुध, केतु, शुक्र, सूर्य, चन्द्रप, मंगलकुल दशा अवधि १२० वर्ष की होती है। हर ग्रह की उपरोक्तु दशा को महादशा भी कहते हैं और ग्रह की महादशा में फिर से नव ग्रह की अन्त र्दशा होती हैं। इसी प्रकार हर अन्तहर्दशा में फिर से नव ग्रह की प्रत्य न्त र्दशा होती हैं और प्रत्यसन्तपर्दशा के अन्द्र सूक्ष्मन दशाएं होती हैं।जिस प्रकार ग्रहों का दशा क्रम निश्चित है उसी प्रकार हर ग्रह की दशा की अवधि भी निश्चित है जो कि इस प्रकार है

ग्रह दशा की अवधि (वर्षों में)

सूर्य    ६
चन्द्र    १०
मंगल    ७
राहु    १८
गुरु    १६
शनि    १९
बुध    १७
केतु    ७
शुक्र    २०
कुल    १२०